शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

पहचान



पहचान
ये मेरी पहली कविता का कुछ अंश है बस एक प्रयास मात्र है सायद आप लोगो को पसंद आये ये भी जरुरी नहीं पर आपकी राय मेरे लिए बहुत जरुरी है
मित्रो काफी दिनों बाद में इस कहानी को पूरा कर पाया हूँ और इस का नाम है पहचान शायद आपको पसंद आये

उम्र 40 पार थी झुरियाँ भी नहीं थी पर देख कर लगता नहीं कि इनकी उम्र 40 हो सकती है क्यूँ कि आजकल तो मॉर्डन जमाना है अगर झुरिया हो भी तो भी नहीं दिखती हैं खेर झुरियाँ छोड़ देते है आते हैं मुद्दे पर

घर के गेट पर लगी नाम कि पटती से लगता है कि ये कोई भूतपूर्व राजनेता के घर है घर में कोई हलचन नहीं एक दम शांति जैसे किसी तूफान के आने से पहले समुंदर शांत दिखाई देता है वैसे ही आज इस घर कि शांति के देख कर लगता था पर ऐसा न भी हो सकता है इतने में उसी शांति को भंग करती हुई एक आवाज गूंजी, रामु कहाँ हो चाय का बोला था क्या चाय बगान से चाय लेने गया है क्या ? नहीं दीदी रसोई घर में छिपकली थी उसे भगा रहा था तुम को कितनी बार कहा है घर कि सफाई ढंग से किया करो छिपकली भागने कि जरुरत नहीं पड़ेगी दीदी सफाई तो करता ही हूँ आपको कितनी बार कहा है कि घर कि एक बार पुताई करवा लो आप मेरी सुनती कहा है हाँ तो ईद आने तो दो अबकी बार जरुर करवाउंगी दीदी आप बस ईद का बोल देती हैं पता नहीं वो ईद आपकी कब आयेगी 10 साल से तो आयी नहीं रामू तू आजकल बहुत ज्यादा बोलने लग गए हो जाओ काम करो अपना मेरा दिमाग ख़राब मत करो लाओ चाय इधर दो खड़े क्यूँ हो बुत कि तरह बस बातें तो तुम से कितनी करवा लो बस काम ही नहीं होता है एक चाय मंगवाई थी आधे घण्टे बाद लेके आया है और ऊपर से वो भी ठंडी रामू आज कोई चिट्ठी आयी है क्यूँ दीदी आपको पता नहीं अगर चिठ्ठी आयी होती तो में आपको देता नहीं तू अपनी बकवास बंद करेगा कि नहीं मैंने जो पूछा है वो बताओ दीदी मैनें तो इन 10 सालो में एक भी चिठ्ठी देखि नहीं इस घर में आयी हुई आप हर रोज ये ही क्यूँ पूछती हैं कुछ नहीं जाओ अपना काम करो मुझे ज्ञान मत तो। .... रामू के जाते ही हिना के चहरे पर एक उदासी सी झलकने लगी जैसे हर रोज रामू को चिठ्ठी का पूछने के बाद झलकती है आँखे देख कर लगता है जैसे बस अभी रोने वाली है पर पता नहीं आँखों से एक भी आंसू नहीं निकल रहा है आँखे भी लाल हो गई है पर आँसुओ का नामो-निशान नहीं है अभी तक सूरज ढल चूका है घर में भी अँधेरा धीरे धीरे दस्तक दे रहा है इतने में रामू अपने पैर पटकते हुवे और कुछ बड़बड़ाते हुवे आया एक घर कि लाइट भी नहीं जलाई जाती उस को भी मुझे ही जलाना पड़ेगा तभी जलेगी इस घर कि लाइट वैसे भी ये घर घर रहा कहाँ है भूतो के बंगलो जैसा तो हो गया है रामू तू फिर लग गया तेरे को नहीं जलनी लाइट तो मत जलाओ में खुद जला लू गई पर कोई भी काम कर के बोला मत करो मुझे बिलकुल पसंद नहीं है इतने में हिना और रामू कि आवाज़ को खामोश किया घर के टेलीफ़ोन कि घंटी ने रामू बोला ये भी में उठा के दू या आप टेलीफोन उठाओ गी हिना कुर्सी से उठी और टेलीफोन उठाया हल्लो कौन …। आप हिना जी बोल रही हैं ना। ............. हाँ जी आप कौन हो में आपकी शुभ -चिंतक ही हूँ अपना नाम बताओ मेरा नाम ह्हह्हह्हह्हह्ह बस इसी लिए तो मैंने आपको टेलीफोन किया है कि में कौन हूँ मेरी पहचान क्या हैं में नहीं पहचान ती आपको ? पहचानती तो में भी नहीं अपने आपको पर क्या करुँ कुछ लोग अपने मतलब से और अपने फायदे के लिए कुछ भी कर लेते हैं वो ये नहीं सोचते कि उसका नतीज़ा क्या होगा बस में वही नतीज़ा हूँ तुम मुझे ये बातें क्यूँ बोल रही हो में तो तुम को जानती नहीं हिना जी में जानती हूँ ना जरुरी नहीं कि हर कोई एक दूसरे को जाने आप तो मुझे पहले भी नहीं जानती थी और अब कैसे जानोगी में टेलीफोन रख रही हूँ हिना जी आप ऐसा जुल्म मत करना मेरे साथ मेरे साथ पहले भी आप एक जुल्म तो कर चुकी हो आपको मेरी पहचान चाहिए ना तो आप मुझे से बात तो करो तभी तो में अपनी पहचान दे पाऊँगी हिना जी इतनी देर में आप इतना तो समझ ही गई होंगी कि में आपको जानती हूँ तुम ज्यादा भाषण मत तो मुझे तू है कौन जल्दी बोलो हिना जी में आपको भाषण दे रही हूँ ? भाषण तो आप जैसे राजनेता लोग ही देते हैं ये मेरे बस कि बात नहीं हर एक चीज़ में भाषण देना और हर एक जगह राजनीती करना आप लोगो कि निति है हम आम लोगो कि नहीं आप लोग अपने ही बनाये रिश्तों में भी राजनीती का खेल खेलते हो अपने खून के रिश्ते पर अपनी राजनीती कि बिसात बिछाकर राजनीती का खेल खेलते हो पता नहीं इस ऊपर वाले के पास ये राजनेता बनाने वाली मिटटी कौन सी है आप लोगो में भी खून लाल ही होता है पर वो अपने खून का खून होते देख कर उबलता नहीं बस आप लोगो के खून में एक ही चीज़ और एक होती हैं राजनीति चाहे वो घर हो या चाहे देश और हिना जी आप मुझ से पहचान पूछ रही हैं आप ने मेरी पहचान बनाई नहीं वह भी आप ने राजनीती का गंदा खेल खेल लिया ईस से अच्छा होता आप मुझे पैदा ही नहीं करती पैदा होने से पहले मार देती मुझे से आप पहचान पूछती हो आप ने मुझे दर -दर हर -पल मरने और रोने के लिए पैदा किया और खुद मजे से वही राजनीती करने लग गई वो भी इस हिंदुस्तान कि खुद को पता नहीं कि में क्या कर रही हूँ वो इस देश कि राजनीती करेगी अगर प्यार ही करना था किसी से तो खुल के करो पयार करना तो पाप नहीं है पर अपने ही किये हुवे पाप को दुसरो के पले बांधना तो प्यार नहीं मर देती मुझे फैंक देती पैदा करते ही पर आपको तो वह भी राजनीती करनी थी फ़ोन कि कट चूका था पर अब भी हिना टेलीफोन के कान लगाये हुवे खड़ी थी एक पत्थर कि तरह न कोई हरकत न कुछ और रामू ने आवाज लगाई दीदी खाने में क्या बनाना है आलू तो हैं नहीं घर में , फिर आवाज लगाई , फिर आवाज लगाई आखिर रामू पास में जाकर बोला दीदी खाने में क्या बनाना है पर हिना कि तरफ से कोई हरकत नहीं रामू ने हिना के सामने जाकर हाथ लगाया तो हिना एक दम जैसे कही दूर से चल कर आयी हो ऐसे हिली बोली हेल्लो हेल्लो। ……। हेल्लो पर कोई आवाज न सुनकर रोने लग गई मुझे पता था एक ना एक दिन मेरे साथ ऐसा ही होने वाला था मेरा कोई कसूर नहीं मेरा कोई कसूर नहीं …………। क्रमश नमस्कार मित्रो मैंने कहानी तो पूरी लिखी है पर सोचा आप लोगो कि राय जान लू कि ये कहानी क़ैसी बन पड़ी है अपनी राय से मुझे जरुर अवगत करवाये क्रमश दिनेश परीक

सोमवार, 2 दिसंबर 2013

थोड़े से जाओगे

तुम  ने लेली  मुझ से विदा  पर तुम  ? 
  तुम चले तो जाओगे  पर
 तुम  रह  भी जाओगे  थोड़े  से
रह  जाता  है बारिश  होने के बाद 
हवा  में नमी 
आने के बाद अश्रु  आँखों  में नमी 
जैसे  रह जाता है  अँधेरे  में 
भी  उजाले  का अहसास  
रह  जाएँगी  वो संजोई  यादें 
रह  जाएँगी वो चांदनी  रातें 
रह  जाएँगी  वो अन  छुये  पल 
जो तुम ने मेरे साथ बिताये  थे ॥ 
जैसे रह  जाता है गाय  के थन  में 
निकल ने का बाद दूध 
रह  जाता है भोर  में चाँद  की 
चांदनी  का उजाला 
तुम भी रह  जाओगे थोड़े  से 
जैसे रह  जाता है 
वो पुराने खंडहर में 
निशानियों  का उजास 
रह  जाता है जैसे प्रीतम  मिलने 
 के   बाद भी बिछड़ने  का  गम 
रह  जाता  है बारिश  होने के बाद 
हवा  में नमी 
आने के बाद अश्रु  आँखों  में नमी 
जैसे  रह जाता है  अँधेरे  में 
भी  उजाले  का अहसास
तुम्हारे  पास  होने  का अहसास 
 तुम तो चले जाओगे 
और थोडा  सा  येही  रह जाओगे 

दिनेश पारीक 
क्रमश 

शनिवार, 7 सितंबर 2013

रिश्ते


रिश्तों से  निकल कर भी उनके  नजदीक आ जाती  हूँ 
हर बार कस्ती  डूबती है पर मैं किनारे ले आती  हूँ
मोती  चुन 2 कर इस रिश्तों  को पिरोती हूँ 
हर एक रिश्तों को अपने दिल में  संजोती हूँ 
पता है मुझे ये न रहेगे साथ मैं 
पता है मुझे फिर एक दिन टूटेगे  
ना  रहे  एक साथ मैं 
हर दिन ऑंखें पानी  छलक  जाती हैं 
फिर दिल कहता है 
अभी तो आँखों के पानी का घड़ा  भरा भी नहीं है 
आधी जिन्दगी  तो बीत  गई  
आधी  कैसे बिताऊ ? ये सोच कर रह जताती हूँ 
कुछ अपनों  का गिला है कुछ पराया 
हर बात को तो मैं तराजू  से भी कडा  तोलती हूँ 
फिर भी रिश्ते तो यही कहते हैं 
मैं ही बहुत भला बुरा बोलती हूँ 
इन अंशुओ  को तो मैं रोक लूगी 
इन तनहइयो को भी सह लूगी
कोशिस  करती हूँ इन रिश्तों  से आजादी पाने को 
फिर भी हर सुबह  इन के नजदीक आ जाती हूँ 
दिनेश पारीक 



शनिवार, 10 अगस्त 2013

किसी ने सच कहा है


किसी ने सच कहा है
दिल से ज्यादा  कोई उपजाऊ  जगह हो ही नहीं सकती
क्यों की
यह कुछ भी बोया जा सकता है
फिर चाहे प्यार हो या नफरत

मंगलवार, 25 जून 2013

मुझे माँ बना दे


काश उपर वाला मुझे लडकी बना दे
और फिर मुझे एक लड़की की माँ बना दे |
वो सकून, वो , वो दर्द, कोई मुझे भी दिला दे,
कोई मुझे एक लड़की के कपडे ही पहना  दे ||
मैं भी उसे अपने गर्भ में रखती , उसको महसूस करती
मेरी सांसो से साँस लेती , उस की बातो को महसूस करती
और नहीं तो कोई मुझे माँ का अस्तित्व ही समझा दे ||

हर दिन   मैं उसका सपना अपनी उसका सपना देखती
वो दिन भी गिनती जब वो इस संसार  को देखती
कब वो आये कब मुझे माँ बुलाये
कोई  अपनी बेटी मुझे एक दिन के लिए उधार देदे
वो न हो सके तो मुझे माँ कहने का अधिकार देदे

 मैं अब असे ही मानता हूँ  आज उसका जनम हो गया
मेरा एक सपना सपने में ही आज झूठ सा सुच हो गया
उस को देख देख कर हँसती, फिर उसको सिने से लगा लेती
कितनी प्यारी गुडिया है , उसके माथे पर कला टिका लगा देती
हे असमान हे धरती आप ही मुझे महसूस कर व दो
कोई तो सुने मेरी पुकार मुझे एक लड़की बना दे ||

 हे असमान हर नजरो से से कह दो  मेरी पुकार
हर आदमी से कह दो मेरी ये सदा
हर मनुष्य से कह दो जो सोचते है मेरी बेटी को ?
कोई तो मुझे इन को बंद करने का अधिकार दिला दो
 ये न  हो सके  तो  मुझे इस धरती से उठा दो

काश उपर वाला मुझे लडकी बना दे
और फिर मुझे एक लड़की की माँ बना दे |

दिनेश पारीक

शनिवार, 18 मई 2013

मुसाफिर हैं हम



मुसाफिर  हैं हम  मुसाफिर  हो तुम भी 
कही न कही  फिर किसी मोड़  पर मुलाकात होगी 
बे नाम  मुसफ़िर हूँ  बे- नाम सफर  है मेरा 
फिर न जाने  किस रोज़  मिलने  की शोगात होगी 
किस दिन कहा  निकल  जाऊं  कह नहीं सकता 
जिस दिन तुम कहो मुझे मिलने को 
क्या पता उस दिन में कही मिल  नहीं सकता 
बे-नाम  मेरी जिंदगी  बे-नाम ठिकाना है 
किस दर पर में रुक जाऊं कुछ कह नहीं सकता 
बस तेरी एक मुलाकात  भी मेरी जिंदगी  की शोगत  होगी 
कसम  है मेरी  मोहबत  की फिर ना  कहूँगा 
की आप  से एक और  मुलाकात होगी 
तिनके की तरह  बह  जाऊंगा  आपकी यादों में 
समदर में  मिल जाऊँगा यादों  के किनारे  लग जाऊँगा 
मिल जायेगीं ताबीर  मेरे  ख्वाबों  की एक दिन 
ये ख्वाब  कब बिखर  जाये कुछ कह नहीं सकता 
कब  दिन निकले  कब श्याम  होगी 
कब तुम से में मिलु कब जिन्दगी आपके  नाम होगी 
दिनेश पारीक 

शनिवार, 11 मई 2013

ये जो जिंदगी की किताब


ये जो  जिंदगी की किताब है ये किताब भी कोई किताब है
कही अंधेरों का ख्वाब है तो कही रोशनी  का हिजाब है ।।
कही उठते धुवें का जवाब है कही बुझते चिराग का हिसाब है 
कही सितारों का चिराग है कही पर रौशनी का नकाब है ।।
कही छावं कही धुप है कही औरों का ही रूप है 
कही कागज के फूल है तो कही इन फूलों में भी खोफ है ।।
कही पर चैन लेती है ये ख़ुशी कही पर मेहरबान होता है ये नसीब
कही खुशियों  में भी गम कही दूर  रह कर भी होता है करीब ।।
कहीं बरकतों के हैं बारिशें कहीं तिश्नगी  बेहिसाब है ।।
कही होटों पर आंसू हैं तो कही आँखों में खिजाब 
कही बेटी पर जुल्म हिसाब  तो कही नारी है बरकत की किताब ।।
कही दोलत का नकाब तो कही गरीबी है बेसुमार 
कही इंसान का नारी पर अत्यचार पर अत्यचार ।।
कही नारी है माँ का अवतार  कही बहु का परोपकार 
कही ये बंद किताब तो कही ये खुली  किताब  ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
ये जो जिंदगी की किताब है ये किताब भी कोई किताब है।।।।।।
दिनेश पारीक 


शनिवार, 4 मई 2013

मेरा भी नाम लिखो


मेरा  भी इस आसमान  में  नाम  लिखो
युगों . युगों  तक हो चर्चा  आम 
ऐसी  कोई  पहचान  लिखों ...... मेरा  भी  इस ......
हर  गली  नुकड़  की  सहायं  लिखो 
कोई  रचना  लिखो , कोई कहानी  लिखो 
कोई गजल  लिखो , कोई आम  लिखो 
मेरी भी कोई हर पहचान  लिखो 
ये इंसान इंसान   बन जाये 
ऐसी  कोई सरल  कुरान  लिखो 
माँ , बेटी  बहिन  को इज्जत  मिले 
ऐसा  कोई मान - सामान  लिखो 
चोर - चोर  मोसेरे  भाई 
ऐसे  को  कोई बेईमान  लिखो 
हर ओरत  की अपनी इज्जत 
इस इज्जत  को अपना  इमान  लिखो 

रविवार, 14 अप्रैल 2013

मेरी मांग



 कुछ देखा और कुछ मन  को  भा गया
उपर वाले  को  फिर से मेरी इस मांग  पर गुस्सा  आ गया 
फिर भी चुप  था  में  जो  मेरी  मांग  ठुकरा  गया 
मैंने  माँगा  जो   उसने कहा वो  गुस्से  में  आ  गया
मेरे चाँद  की रोटी  फिर  से कोई खा  गया 
 सपना था मेरा  बहुत पुराना  मुझे भी गुस्सा  आ  गया
नील  आसमान  पर मैं  भी राहू  की तरह  छा  गया 
मेरा सपना  बेचैन  था बेचैन थी ये हवाएँ 
मेरी हर  उमंग  बेचैन  थी  मेरा  हर  सपना  छला  गया 
मेरी हर  उमंग  को  मेरी  आदत  कहा  गया 
 दिन  में  सोने  अँधेरी  रात  को भी दिन  कहा  गया 
अदालत  लगी इस असमान पर  फिर मुझे बंदी  बनाया  गया 
आसमान  के सितारों  को गवाह  बनाया  गया 
मुझे  मेरे  सपने  देखने  के जुर्म  में  पागल  बनाया  गया 
हर  सपना  टुटा मेरा  अब  क  से  कबूतर  बनाया  गया 
मुझे अब विद्यालय  जाने  का  फसला  सुनाया  गया 


शनिवार, 16 मार्च 2013

एक शाम तो उधार दो


तुम्हें जब  भी मिलें  फुरसतें , मेरे  दिल  से  ये बोझ  उत्तार  दो 
मैं  बहुत दिनों से  उदास हूँ , मुझे  एक शाम  तो  उधार  दो 
इस दुनिया  का रंग  उतार  दो अपने  प्रेम  रंग  चढ़ा  दो
ये बेरंगी  हो गई है मेरी दुनिया  अपना  रंग  मुझे उधार  दो 
मुझे  अपने  रूप  की धुप  दो  जो चमक  सके मेरी दुनिया 
मुझे  अपने  रंग  में रंग दो  मेरे सारे जंग  उतर दो  
तुम बिन  जिया  नहीं जाता  एक  तो जीने का मक़ाम  दो 
हर  शाम मुझे  काटती  है मुझे  मौत तो आसान  दो 
मेरी ऑंखें बोझिल  हो गई हैं  ये बोझ तो उतार  दो 
 तुम बिन पतझड़ जैसा  जीवन अपना  दिल का बसंत सुमार  दो 
तुम से डोरी से डोरी बंधी रहे  मुझे ऐसा  कोई नकाब  दो
बारिश  आयी  चली गई पतझड़  जैसा ना  तुम  ख्वाब दो 
बहुत दिनों  से बे -करार  हूँ जीने की  एक वजह उधार  दो 
दिनेश पारीक 


बुधवार, 13 मार्च 2013

साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )



आज सुबह  जीमेल  खोल तो सबसे  पहले नव्या से आया एक मेल  मिला जब से खोल तो पढ़ा तो में दंग  रहा गया  अब तक में नहीं समझ पा  रहा हूँ की क्या ये सच में साहित्य  की लड़ाई है या फिर साहित्य के नाम की लड़ाई है या फिर घर्णा  है या द्वेष  है या फिर से एक धोका है  इस संदर्भ  में आप  से राय  जानना  चाहता हूँ ? क्या सच  में ऐसा  करना ठीक है सच  में दोस्ती नाम पर इतना बड़ा विशवासघात और वो भी एक साहित्य के नाम को लेकर जिस साहित्य  से शीला डोंगरे जी को जाना पहचाना  जाता है उस साहित्य  के साथ इतना बड़ा  विश्वासघात  बड़े शर्म  और लजा  की बता है 
दिनेश पारीक 


Sheela Dongre

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श्री पंकज त्रिवेदी जी ...
   
काफी समय से हमारा सम्पर्क नही रहा .. आपको जरुरी सुचना देनी थी ।  मेरी प्रिंट पत्रिका 'नव्या' का पंजीकरण प्रक्रिया पूर्ण हो चुकी है ! इस पत्रिका के सम्पूर्ण अधिकार मेरी संस्था ''अखिल हिंदी साहित्य सभा'' अहिसास के पास सुरक्षित है । १५ मार्च २००१३ को आपको बाकायदा लीगल नोटिस भेज दिया जाएगा । अब से 'नव्या' मासिक पत्रिका के रूप में पाठकों तक पहुंचेगी । आप से विनम्र निवेदन है की आप 'नव्या' का नाम उपयोग न करे । तथा 'नव्या के नाम से किसी प्रकार से कोई आर्थिक  वेव्हार न करे । ICICI  ब्यांक का अकाउंट तुरंत बंद करे । मै कल ही फेब पर ये नोटिस दल देती हूँ । ताकि लोगो को समय रहते सुचना मिल सके ।
                                                            धन्यवाद
                                                                                                               भवदीय 
                                                                                                           शीला डोंगरे  

                         _________________________________________________

Pankaj- Smallसम्माननीय साहित्यकार और पाठकगण,
आप सभी को मेरा नमस्कार |
‘नव्या’ मेरा सपना था और उसी सपने को साहित्य के माध्यम से साकार करना चाहता हूँ | आप सभी ने मुझे ‘नव्या’ के लिए कार्य करता हुआ हमेशा देखा है | आप सभी जानते होंगे कि कोई भी पत्रिका किसी अकेले से आगे बढ़ नहीं सकती | यही कारण मैंने कुछ लोगों को संपादन कार्य में सहयोग लेने के आशय से स्वीकृत किया था | जिसमें नासिक से शीला डोंगरे सह संपादक के रूप में अपनी मर्जी से जुडी थी | शुरू में संपादन में मेरे साथ कार्य करने के बाद विश्वास जीत लिया था |
आप सभीने देखा होगा कि एक वर्ष पूर्ण होते हमने ‘नव्या-प्रिंट’ के चार अंक प्रकाशित किये और उन सभी में सह संपादक के तौर पर शीला डोंगरे का नाम रहा है | मतलब यही कि हमारे मन में कहीं कोई खोट नहीं थी | मगर आज मुझे शीला डोंगरे का एक ईमेल मिला जिसने मुझे झकझोरकर रख दिया | मुश्किल वक्त तो हर किसी को आता है | मगर दोस्ती के नाम कंधे पे हाथ रखकर पीठ में वार करने वाले अपने ही होते हैं | अपने निहित स्वार्थ के लिए शीला डोंगरे ने मुझे जो ईमेल दिया है वो सादर आप सभी के सामने रखता हूँ | ‘नव्या’ के आर.एन.आई. नंबर की प्रक्रिया सरकारीकारण के हिसाब से चल रही है | गुजरात में विविध चुनाव और अन्य कारणों से विलम्ब जरूर हुआ |
अब आप सभी से एक ही बिनती है कि – मेरे दो ईमेल editornawya@gmail.com और nawya.magazine@gmail.com तथा मेरे मोबाईल नंबर : 09662514007 / 09409270663 के अलावा किसी भी ईमेल से या फोन से ‘नव्या’ के सन्दर्भ में आपसे कोई कुछ भी कहें या संपर्क करें तो उसके लिए मैं कसूरवार नहीं हूँ या न जिम्मेदारी होगी |
‘नव्या’ का प्रकाशन यहाँ सुरेन्द्रनगर (गुजरात) से ही होगा |
अब असलियत आप सभी के सामने है | मैं आर.एन.आई. नंबर पाने के लिए तेज़ गति से कोशिश करता हूँ | ‘नव्या’ जरूर चलेगी, आप भरोसा रखें | मगर अब हम सभी को पूरी सावधानी बरतनी होती | ‘नव्या’ की आबरू दाँव पर लगी है | ऐसे में मैं आप सभी का सहयोग चाहूँगा | कुछ लोग मुझे पहले और फिर ‘नव्या’ को जानते हैं और कुछ ‘नव्या’ के कारण मुझे | मैं अपने बारे में ज्यादा सफाई नहीं दूँगा और न इस वक्त उस मन:स्थिति में हूँ | मुझे ताज्जुब इस बात का है कि शीला डोंगरे ने कब और कैसे यह सब किया उसका उत्तर तो वोही दे सकती है |  वो 'नव्या' की 'गुडविल' का इस्तेमाल करना चाहती है, अभी तो यही प्रतीत होता है |
मगर मेरे अंतर से जो शब्द निकल रहे हैं उस पर आपको भरोसा होगा यही मानकर मैं आगे बढ़ रहा हूँ | हारना मैंने नहीं सीखा | आप अगर 'नव्या' और मेरे साथ हैं तो खुलकर अपनी वाल पर भी इसके पुष्टि देकर अपनी राय खुलकर जरूर दीजिए | सबसे अहम बात - अगर आपके हाथ में 'नव्या' के नाम से कोई भी पत्रिका अन्य शहर से मिलती हैं और अगर उसके लिए पैसे देकर सदस्यता प्राप्त करते हैं तो वो खुद आपकी ही जिम्मेदारी होगी | व्यक्तिगत मेरा या 'नव्या' का इस से कोई संबंध नहीं हैं | आप सभी की प्रतिक्रिया-सलाह-सुझाव की अपेक्षा हैं |
आपका,
पंकज त्रिवेदी


रविवार, 10 मार्च 2013

अर्ज सुनिये

विनती  सुनिये हे  समाज हमारी
दुविधा  में पड़ी  हूँ  जंजीरो  से जकड़ी  हूँ 
विनती  सुनिये  हे  नाथ हमारी .............................
इस दुविधा  की घडी  मैं  इस अत्याचारों  की गली में  ... 
विनती  सुनिये  हे  कृष्ण  मुरारी 
भरे  मेरे विलोचन  नयेना दुख  पड़ा है भरी 
कु द्रष्टि हो रही है  ये तेरी नारी  
विनती  सुनिये  हे  ब्रिज  बिहारी 
पल पल  जीती  पल पल मरती 
पल भर में ही मर मर  जाती 
किस 2 आँखों  से  बचूं  किस  2 आँखों  में खो जाऊं  
हर  दिन शर्मिंदा  होती  किस दुनिया में  खो जाऊं 
 इस धरा  पर बोझ  पड़ा  है भारी  हे  मेरे  कृष्ण  मुरारी ..... विनती 
 विनती सुनिये   श्री रणछोड़  बिहारी ........ विनती  
हर  दिन तपती  हर दिन  खोती  इस समाज  की मारी 
हर दिन  मैं ही  तो  गर्भ  में  जाती मारी 
इस व्यथा  को  किस  तरह  सुनाऊ  हें  ब्रज  बिहारी 
च्चकी  के पाटों  में  मैं  पिसती 
हर  बिस्तर  पर  में ही जलती 
हर चोराहों  पर में नंगी  होती 
हर  मंदिर  में   मैं  ही पूजी  जाती 
फिर में ही  बलि  के लिए  उतारी  जाती 
हर पल  द्रोपती  मुझे  ही बनाई  जाती 
अर्ज सुनिये  हे  गोपाल  हमारी .......... विनती सुनिये  हे  नाथ हमारी 
दिनेश  पारीक 

गुरुवार, 7 मार्च 2013

तुम मुझ पर ऐतबार करो ।


 तुम  मुझ पर ऐतबार करो ।
मैंने तुम्हारा हाथ थामकर  तुम्हें । उम्र भर चाहने की कसम खाई हैं 
तुम मेरी इन यादों पर ऐतबार करो । इन में  तुम्हारा ही घरोंदा है 
तुम मेरे इन होटों का ऐतबार करो !जिस पर हर वक़्त तुम्हारा ही नाम  रहता है 
तुम मेरी इन आँखों का ऐतबार  करो । जो हर पल तुम्हें देखने के लिए बेचैन रहती  हैं ।।
तुम मेरी सांसों ल ऐतबार  करो ।जिस में सिर्फ तुम्हारी खुशबू महकती है 
तुम मेरे ख्यालों और  दिल  का ऐतबार  करो  । जो तुम्हारे बगैर कही नहीं  लगता है  
तुम मेरे इस वजूद  का ऐतबार  करो  । आपके  लिए ही  मुझे बनाया  है 
तुम  मेरे  दिल  का  ऐतबार  करो , जो ये तुम्हारे  ही नाम  पे धडकता है 
तुम मुझे पर ऐतबार  करो  जो में सिर्फ तुम को अपनी मानता हूँ 
             क्यूँ कहती हो तुम
मत कहो ये तुम की अब किसी बात  पर ऐतबार  नहीं होता """"""""""""""""""
होता है बस समझोता  दिलों  का बस प्यार  नहीं होता है 
कितना  समझाऊ  तुम को और इस दिल-ऐ  नादान  को 
तुम्हारा  एक कतरा  प्यार  भी मेरे लिए सागर  होता है 
तुम  मुझ पर ऐतबार करो ।   "दिनेश पारीक "

शनिवार, 2 मार्च 2013

पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?

कोन  सुनेगा  मेरा दर्द 
टिका  कर रखती है
पृथिवी हमें और कंपाती भी,
है  जल  धरा  के बरसनेपर 
बरसता गगन से
जल और अग्नि, पवन देता ठिठुरन
और चक्रवात
सब  कितनी  सहजता  से  हो जाता है 
कभी हम भी वशीभूत  हो जाते  है 
इस धरा  पर  
फूलो  के महकने  से लेकर 
मुरझाने  तक  सहना 
पानी  बरसने  से लेकर 
सूखने  तक  सहना 
पेड़ो   के अकुर  फूटने  से लेकर 
पेड़  बनते  देखना 
फिर उसी  पेड़  को कटने  देखना 
और  अपने ही अंग  को  अपने ही बेटे  की चिता 
 के साथ दोनों के जलते देखना 
क्या इस पृथिवी के लिए  इतना सहज  है 
सहज  ये सहज शब्द  ही हम कितनी  सहज 
से उपयोग  मैं ले लेते है 
कभी ये सहज  शब्द  माँ   बहिन  बेटी 
अर्धांगिनी  के लिए हम  बड़ी आसानी 
से उपयोग  मैं लाते  हैं 
कभी नहीं सोचते 
की वो  इस दर्द  भरे  शब्द  को सुनकर 
क्या सहज  महसूस  करती है 
वो भी तो  हमारे  लिए  एक धरा  है 
उसी  के अंग  से हमारे  अंग है
पता नही नहीं कब तक ये सहज शब्द 
वो  सह सकेगी   ये भी तो द्रोपती  ही है 
कब ये द्रोपती  बन जाये  फिर  
एक महाभारत  हो जाये 

महाभारत
होता है जीवन
हर किसी का भीतर भी,
बाहर भी बैठे हैं नकृष्ण
सबके भीतर,
कह रहे गीता
सबको अपनी-अपनी
सुन सकते हो इसको तुम भी
अर्जुन बनकर।

गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

राष्ट्र हित में आप भी जुड़िये इस मुहीम से

राष्ट्र हित में आप भी जुड़िये इस मुहीम से -


सन 1945 मे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की तथाकथित हवाई दुर्घटना या उनके जापानी सरकार के सहयोग से 1945 के बाद सोवियत रूस मे शरण लेने या बाद मे भारत मे उनके होने के बारे मे हमेशा ही सरकार की ओर से गोलमोल जवाब दिया गया है उन से जुड़ी हुई हर जानकारी को "राष्ट्र हित" का हवाला देते हुये हमेशा ही दबाया गया है ... 'मिशन नेताजी' और इस से जुड़े हुये मशहूर पत्रकार श्री अनुज धर ने काफी बार सरकार से अनुरोध किया है कि तथ्यो को सार्वजनिक किया जाये ताकि भारत की जनता भी अपने महान नेता के बारे मे जान सके पर हर बार उन को निराशा ही हाथ आई !

मेरा आप से एक अनुरोध है कि इस मुहिम का हिस्सा जरूर बनें ... भारत के नागरिक के रूप मे अपने देश के इतिहास को जानने का हक़ आपका भी है ... जानिए कैसे और क्यूँ एक महान नेता को चुपचाप गुमनामी के अंधेरे मे चला जाना पड़ा... जानिए कौन कौन था इस साजिश के पीछे ... ऐसे कौन से कारण थे जो इतनी बड़ी साजिश रची गई न केवल नेता जी के खिलाफ बल्कि भारत की जनता के भी खिलाफ ... ऐसे कौन कौन से "राष्ट्र हित" है जिन के कारण हम अपने नेता जी के बारे मे सच नहीं जान पाये आज तक ... जब कि सरकार को सत्य मालूम है ... क्यूँ तथ्यों को सार्वजनिक नहीं किया जाता ... जानिए आखिर क्या है सत्य .... अब जब अदालत ने भी एक समय सीमा देते हुये यह आदेश दिया है कि एक कमेटी द्वारा जल्द से जल्द इस की जांच करवा रिपोर्ट दी जाये तो अब देर किस लिए हो रही है ??? 

आप सब मित्रो से अनुरोध है कि यहाँ नीचे दिये गए लिंक पर जाएँ और इस मुहिम का हिस्सा बने और अपने मित्रो से भी अनुरोध करें कि वो भी इस जन चेतना का हिस्सा बने !


Set up a multi-disciplinary inquiry to crack Bhagwanji/Netaji mystery



 यहाँ ऊपर दिये गए लिंक मे उल्लेख किए गए पेटीशन का हिन्दी अनुवाद दिया जा रहा है :- 

सेवा में,
अखिलेश यादव, 
माननीय मुख्यमंत्री
उत्तर प्रदेश सरकार 
लखनऊ 

प्रिय अखिलेश यादव जी,

इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर, आप भारत के सबसे युवा मुख्यमंत्री इस स्थिति में हैं कि देश के सबसे पुराने और सबसे लंबे समय तक चल रहे राजनीतिक विवाद को व्यवस्थित करने की पहल कर सकें| इसलिए देश के युवा अब बहुत आशा से आपकी तरफ देखते हैं कि आप माननीय उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के हाल ही के निर्देश के दृश्य में, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाग्य की इस बड़ी पहेली को सुलझाने में आगे बढ़ेंगे|
जबकि आज हर भारतीय ने नेताजी के आसपास के विवाद के बारे में सुना है, बहुत कम लोग जानते हैं कि तीन सबसे मौजूदा सिद्धांतों के संभावित हल वास्तव में उत्तर प्रदेश में केंद्रित है| संक्षेप में, नेताजी के साथ जो भी हुआ उसे समझाने के लिए हमारे सामने आज केवल तीन विकल्प हैं: या तो ताइवान में उनकी मृत्यु हो गई, या रूस या फिर फैजाबाद में | 1985 में जब एक रहस्यमय, अनदेखे संत “भगवनजी” के निधन की सूचना मिली, तब उनकी पहचान के बारे में विवाद फैजाबाद में उभर आया था, और जल्द ही पूरे देश भर की सुर्खियों में प्रमुख्यता से बन गया| यह कहा गया कि यह संत वास्तव में सुभाष चंद्र बोस थे। बाद में, जब स्थानीय पत्रकारिता ने जांच कर इस कोण को सही ठहराया, तब नेताजी की भतीजी ललिता बोस ने एक उचित जांच के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने उस संत के सामान को सुरक्षित रखने का अंतरिम आदेश दिया।

भगवनजी, जो अब गुमनामी बाबा के नाम से बेहतर जाने जाते है, एक पूर्ण वैरागी थे, जो नीमसार, अयोध्या, बस्ती और फैजाबाद में किराए के आवास पर रहते थे। वह दिन के उजाले में कभी एक कदम भी बाहर नहीं रखते थे,और अंदर भी अपने चयनित अनुयायियों के छोड़कर किसी को भी अपना चेहरा नहीं दिखाते थे। प्रारंभिक वर्षों में अधिक बोलते नहीं थे परन्तु उनकी गहरी आवाज और फर्राटेदार अंग्रेजी, बांग्ला और हिंदुस्तानी ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया, जिससे वह बचना चाहते थे। जिन लोगों ने उन्हें देखा उनका कहना है कि भगवनजी बुजुर्ग नेताजी की तरह लगते थे। वह अपने जर्मनी, जापान, लंदन में और यहां तक कि साइबेरियाई कैंप में अपने बिताए समय की बात करते थे जहां वे एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु की एक मनगढ़ंत कहानी "के बाद पहुँचे थे"। भगवनजी से मिलने वाले नियमित आगंतुकों में पूर्व क्रांतिकारी, प्रमुख नेता और आईएनए गुप्त सेवा कर्मी भी शामिल थे।

2005 में कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश पर स्थापित जस्टिस एम.के. मुखर्जी आयोग की जांच की रिपोर्ट में पता चला कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु 1945 में ताइवान में नहीं हुई थी। सूचनाओं के मुताबिक वास्तव में उनके लापता होने के समय में वे सोवियत रूस की ओर बढ़ रहे थे।

31 जनवरी, 2013 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ललिता बोस और उस घर के मालिक जहां भगवनजी फैजाबाद में रुके थे, की संयुक्त याचिका के बाद अपनी सरकार को भगवनजी की पहचान के लिए एक पैनल की नियुक्ति पर विचार करने का निर्देशन दिया।

जैसा कि यह पूरा मुद्दा राजनैतिक है और राज्य की गोपनीयता के दायरे में है, हम नहीं जानते कि गोपनीयता के प्रति जागरूक अधिकारियों द्वारा अदालत के फैसले के जवाब में कार्यवाही करने के लिए किस तरह आपको सूचित किया जाएगा। इस मामले में आपके समक्ष निर्णय किये जाने के लिए निम्नलिखित मोर्चों पर सवाल उठाया जा सकता है:

1. फैजाबाद डीएम कार्यालय में उपलब्ध 1985 पुलिस जांच रिपोर्ट के अनुसार भगवनजी नेताजी प्रतीत नहीं होते।

2. मुखर्जी आयोग की खोज के मुताबिक भगवनजी नेताजी नहीं थे।

3. भगवनजी के दातों का डीएनए नेताजी के परिवार के सदस्यों से प्राप्त डीएनए के साथ मेल नहीं खाता।

वास्तव मे, फैजाबाद एसएसपी पुलिस ने जांच में यह निष्कर्ष निकाला था, कि “जांच के बाद यह नहीं पता चला कि मृतक व्यक्ति कौन थे" जिसका सीधा अर्थ निकलता है कि पुलिस को भगवनजी की पहचान के बारे में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला।

हम इस तथ्य पर भी आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं कि न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग की जांच की रिपोर्ट से यह निष्कर्ष निकला है कि "किसी भी ठोस सबूत के अभाव में यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि भगवनजी नेताजी थे"। दूसरे शब्दों में, आयोग ने स्वीकार किया कि नेताजी को भगवनजी से जोड़ने के सबूत थे, लेकिन ठोस नहीं थे।

आयोग को ठोस सबूत न मिलने का कारण यह है कि फैजाबाद से पाए गए भगवनजी के तथाकथित सात दातों का डी एन ए, नेताजी के परिवार के सदस्यों द्वारा उपलब्ध कराए गए रक्त के नमूनों के साथ मैच नहीं करता था। यह परिक्षण केन्द्रीय सरकार प्रयोगशालाओं में किए गए और आयोग की रिपोर्ट में केन्द्र सरकार के बारे मे अच्छा नहीं लिखा गया। बल्कि, यह माना जाता है कि इस मामले में एक फोरेंसिक धोखाधडी हुई थी।
महोदय, आपको एक उदाहरण देना चाहेंगे कि बंगाली अखबार "आनंदबाजार पत्रिका" ने दिसंबर 2003 में एक रिपोर्ट प्रकाशित कि कि भगवनजी ग्रहण दांत पर डीएनए परीक्षण नकारात्मक था। बाद में, "आनंदबाजार पत्रिका", जो शुरू से ताइवान एयर क्रेश थिओरी का पक्षधर रहा है, ने भारतीय प्रेस परिषद के समक्ष स्वीकार किया कि यह खबर एक "स्कूप" के आधार पर की गयी थी। लेकिन समस्या यह है कि दिसंबर 2003 में डीएनए परीक्षण भी ठीक से शुरू नहीं किया गया था। अन्य कारकों को ध्यान में ले कर यह एक आसानी से परिणाम निकलता है कि यह "स्कूप" पूर्वनिर्धारित था।

जाहिर है, भारतीय सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश, एम.के. मुखर्जी ऐसी चालों के बारे में जानते थे और यही कारण है कि 2010 में सरकार के विशेषज्ञों द्वारा आयोजित डी एन ए और लिखावट के परिक्षण के निष्कर्षों की अनदेखी करके,उन्होंने एक बयान दिया था कि उन्हें "शत प्रतिशत यकीन है" कि भगवनजी वास्तव में नेताजी थे।यहाँ यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि सर्वोच्च हस्तलेख विशेषज्ञ श्री बी लाल कपूर ने साबित किया था कि भगवनजी की अंग्रेजी और बंगला लिखावट नेताजी की लिखावट से मेल खाती है।

भगवनजी कहा करते थे की कुछ साल एक साइबेरियाई केंप में बिताने के बाद 1949 में उन्होंने सोवियत रूस छोड़ दिया और उसके बाद गुप्त ऑपरेशनो में लगी हुई विश्व शक्तियों का मुकाबला करने में लगे रहे। उन्हें डर था कि यदि वह खुले में आयेंगे तो विश्व शक्तियां उनके पीछे पड़ जायेंगीं और भारतीय लोगो पर इसके दुष्प्रभाव पड़ेंगे। उन्होंने कहा था कि “मेरा बाहर आना भारत के हित में नहीं है”। उनकी धारणा थी कि भारतीय नेतृत्व के सहापराध के साथ उन्हें युद्ध अपराधी घोषित किया गया था और मित्र शक्तियां उन्हें उनकी 1949 की गतिविधियों के कारण अपना सबसे बड़ा शत्रु समझती थी।

भगवनजी ने यह भी दावा किया था कि जिस दिन 1947 में सत्ता के हस्तांतरण से संबंधित दस्तावेजों को सार्वजनिक किया जाएगा, उस दिन भारतीय जान जायेंगे कि उन्हें गुमनाम/छिपने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ा।

खासा दिलचस्प है कि , दिसम्बर 2012 में विदेश और राष्ट्रमंडल कार्यालय, लंदन, ने हम में से एक को बताया कि वह सत्ता हस्तांतरण के विषय में एक फ़ाइल रोके हुए है जो "धारा 27 (1) (क) सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम (अंतरराष्ट्रीय संबंधों) के तहत संवेदनशील बनी हुई है और इसका प्रकाशन संबंधित देशों के साथ हमारे संबंधों में समझौता कर सकता है" ।

महोदय, इस सारे विवरण का उद्देश्य सिर्फ इस मामले की संवेदनशीलता को आपके प्रकाश में लाना है। यह बात वैसी नहीं है जैसी कि पहली नजर में लगती है। इस याचिका के हस्ताक्षरकर्ता चाहते है कि सच्चाई को बाहर आना चाहिए। हमें पता होना चाहिए कि भगवनजी कौन थे। वह नेताजी थे या कोई "ठग" जैसा कि कुछ लोगों ने आरोप लगाया है? क्या वह वास्तव में 1955 में भारत आने से पहले रूस और चीन में थे, या नेताजी को रूस में ही मार दिया गया था जैसा कि बहुत लोगों का कहना है।

माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और न्यायमूर्ति वीरेन्द्र कुमार दीक्षित, भगवनजी के तथ्यों के विषय में एक पूरी तरह से जांच के सुझाव से काफी प्रभावित है। इसलिए हमारा आपसे अनुरोध है कि आप अपने प्रशासन को अदालत के निर्णय का पालन करने हेतू आदेश दें। आपकी सरकार उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में विशेषज्ञों और उच्च अधिकारियों की एक टीम को मिलाकर एक समिति की नियुक्ति करे जो गुमनामी बाबा उर्फ भगवनजी की पहचान के सम्बन्ध में जांच करे।

यह भी अनुरोध है कि आपकी सरकार द्वारा संस्थापित जांच -

1. बहु - अनुशासनात्मक होनी चाहिए, जिससे इसे देश के किसी भी कोने से किसी भी व्यक्ति को शपथ लेकर सूचना देने को वाध्य करने का अधिकार हो । और यह और किसी भी राज्य या केन्द्रीय सरकार के कार्यालय से सरकारी रिकॉर्ड की मांग कर सके।

2. सेवानिवृत्त पुलिस, आईबी, रॉ और राज्य खुफिया अधिकारी इसके सदस्य हो। सभी सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारियों, विशेष रूप से उन लोगों को, जो खुफिया विभाग से सम्बंधित है,उत्तर प्रदेश सरकार को गोपनीयता की शपथ से छूट दे ताकि वे स्वतंत्र रूप से सर्वोच्च राष्ट्रीय हितों के लिए अपदस्थ हो सकें।

3. इसके सदस्यों में नागरिक समाज के प्रतिनिधि और प्रख्यात पत्रकार हो ताकि पारदर्शिता और निष्पक्षता को सुनिश्चित किया जा सके। ये जांच 6 महीने में खत्म की जानी चाहिए।

4. केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा आयोजित नेताजी और भगवनजी के बारे में सभी गुप्त रिकॉर्ड मंगवाए जाने पर विचार करें। खुफिया एजेंसियों के रिकॉर्ड को भी शामिल करना चाहिए। उत्तर प्रदेश कार्यालयों में खुफिया ब्यूरो के पूर्ण रिकॉर्ड मंगावाये जाने चाहिए और किसी भी परिस्थिति में आईबी स्थानीय कार्यालयों को कागज का एक भी टुकड़ा नष्ट करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

5.सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भगवनजी की लिखावट और अन्य फोरेंसिक सामग्री को किसी प्रतिष्ठित अमेरिकन या ब्रिटिश प्रयोगशाला में भेजा जाये.

हमें पूरी उम्मीद है कि आप, मुख्यमंत्री और युवा नेता के तौर पर दुनिया भर में हम नेताजी के प्रसंशकों की इस इच्छा को अवश्य पूरा करेंगे |

सादर
आपका भवदीय
अनुज धर
लेखक "India's biggest cover-up"

चन्द्रचूर घोष
प्रमुख - www.subhaschandrabose.org और नेताजी के ऊपर आने वाली एक पुस्तक के लेखक


Thanks & Regards

Dinesh pareek