गुरुवार, 29 नवंबर 2012

रोशनी -रोशनी

देखने का तो मन था की चाँद देखते हैं  पर 
आज टिमटिमाते तारो को देख ने लग गया 
ये  भी इतनी दुरी से केसे टिमटिमाते  रहते है
अपना एक संसार से लगता है उनका 
कोई भाई कोई कुछ हर एक रिश्तो मैं  बंधे  लगते है 
ये सब देख चेहरा मुरझा सा जाता है 
ये अपनी दुजिया बेगानी सी लगती है 
जैसे  कड़ी धुप मैं इस दुनिया का रंग उड़ गया हो 
और उस सूरज से रोशनी पाकर ये तारे टीम तिमाते रहते हैं 
वही रौशनी पाकर हम कैसे   कम करते रहते हैं 
न गम देखने को मिला न कोई शिकवा 
न धुप थी वह ना अँधेरा 
दुसरो से पारकर रौशनी  फिर भी कहते हैं 
हमारा भी होता है सवेरा 
काश ये मुझे भी कोई समझा दे  
सवेरा होकर भी नहीं होता सवेरा 
कोई मुझे देदे वो रोशनी जिसे कर दू इस दुनिया में सवेरा 

शनिवार, 24 नवंबर 2012

ये मेरा रंग मेरा

ना मुझे प्यार करने का हक है ? ना मुझे इकरार करने का हक है ?
मुझे तो बस ,हर किसी के  इशारों पे नाचने का ही हक है ||
ना मुझे कुछ पाने का हक है ?  .... मुझे तो बस  हर ................
पापा तो हर मेहमान से कहते है 
ये मेरी प्यारी है ये मेरी राजकुमारी है, नाजो से पाला है  
बस एक रंग का फर्क है , बस थोड़ी  सी काली है
मुझ पर तो आसमान ही टूट पड़ा  
सुनकर इतना मिटटी से मूर्त बन गई| 
हर ख़ुशी टूट गई एक सीरत बन गई ||
मन टूट - टूट कर बिखर गया , हर ख़ुशी  लुट गई 
मन के दिये तो कब के बुझ गए थे , अब दुनीया लुट गई  ||
 मुझे तो  एक रंग का फर्क  भी आज समझ मैं  आया  है
मुझे पैदा होने से पहले क्यों नहीं मार दिया  
मिटटी को तो मिटटी में ही मिलना था , क्यों नहीं मुझे मिटटी में ढाल दिया  ||
अब तो अपने ही पराये लगते है  अपने ही घर मैं अजीब -अजीब साये दीखते है 
बस मेरे हाथ मैं एक फोटो थमा दिया |
बस तू इसे प्यार कर ये हुकम सुना दिया ||
कैसे करू मैं एक अजनबी से प्यार  , कैसे ना करू मैं मुझ से प्यार 
ना इस को मुझ से प्यार है , ना आपको , ना इस दुनीया को 
ना उस खुदा को जिस ने मुझ मैं बे रंग भरे है 
 क्या मुझे इतना पूछने का हक है ?
क्या काले रंग की लड़की की शादी नहीं होती ?
क्या वो बोझ होती है ? 
क्या उन को प्यार करने का हक नहीं? 
क्या उनको जीने का हक नहीं ? 

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

विचार


आज सुबह उठ कर  चाय भी नहीं पी और सोचने बैठ गया
रात कुछ सोच कर सोया था की कल कुछ नया करुगा 
पर आज फिर मैं अपने मन को ही कचोटने बैठ गया 
सोच था कुछ नया कर गुजरुगा 
पर मैं अपने आप को ही खाने बैठ गया 
कल का हिसाब लगाना था पर ?
मैं हर साल का हिसाब लगाने बैठ गया 
हिसाब लगाने के चक्कर मैं सारा दिन निकल गया 
देखना था मुझे सुबह सूरज 
और अब डूबता सूरज को देखते .....................
लिखना था कुछ और 
लिखता चला गया कुछ और 
दिनेश पारीक 

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

ये मेरे बुजर्गो का खजाना

उम्र को देख कर तो कुछ नहीं कहा मैने
पर उनकी उम्र ने बहुत कुछ कहा था उस दिन 
जिंदगी भर की बेसर्मी से बच गया था उस दिन 
उस दिन पता चला इस उम्र के पड़ाव का 
हजारो मुश्किलो को पार करने के बाद ये ही 
तो एक दम भरने वाली चीज़ रहती है 
तकाजा , अनुभव , समझदारी ,
जिम्मेदारी , कुछ दर्द कुछ यादें 
कहा उस दिन मुझे की अब तुम इन्हें संभालना
उनकी आँखों के दर्द को समझ कर 
वादा तो कर दिया था मैंने पर ?
इस खजाने को कैसे  संभालू?
ये मेरे बुजर्गो का खजाना