बुधवार, 19 सितंबर 2012

मनहूस


मुझे तो  लोगो  ने  मनहूस  करार  दे दिया
मुझे तो अपनों ने सदाचार से दुराचार दे दिया
वहा भटक भी जाता मैं  जिन गलियों मैं वो थे
वहा रूक भी जाता मैं जी गलियों मैं वो थे |
हम तो उस दिन भी मोहबब्त करने गए थे
जिस दिन उन होने मुझे मुझे बे वफ़ा करार देदिया ||
मनहूस तो सायद था  ही में
मनहूस ही जन्मा  था मैं
तभी तो आपने मुझे कन्यादान का पुकार देदिया ....
मोहबब्त के कीड़े  मर गए दिल ही दिल में
 दीवाना बे मोहबब्त किये  मशहूर हो गया
जहाँ दिन के उजालों में  खुला प्यार चलता हो
वहा उनकी शादी  देखने को भी मैं मजबूर हो गया
 किस को पुकारू में लोगो ने चार कन्धा दे दिया
बारिश ने भी साथ न दिया  फिर मिटटी के  हवाले कर दिया
मुझे तो  लोगो  ने  मनहूस  करार  दे दिया
दिनेश पारीक

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

मेरी इबादत पे शक क्यों होता है


तुम मुझे कहते हो अब की मुझे मोहब्बत से डर लगता है 
डरते तो तुम हो  और मेरी इबादत पे शक क्यों होता है
मैंने तो उन दिनों ही सारी जिंदगी जी ली थी 
अब तो मरने का भी गम नहीं है मुझे को 
काश वो दिन कुछ और लम्बे हो जाते 
शादी और सगाई के  बीच के वो दिन 
कुछ और  उधार मै ही मिल जाते 
जब देखा था तुम को मैंने | एक टक देखती रह गई थी 
कभी इतना अपने आप से गुम न हुई  थी 
बस पहली बार में ही प्यार कर बैठी
बात  तो उस वक़्त नहीं हो  पाई थी तुम से  | पर ?
तुम्हारी आँखों से ही हर सवाल का जवाब मिल ही गया था 
वो केसा अद्भुत प्यार और इबादत थी 
हर वक़्त तुम ही तुम दिखाई देते थे 
हर रोज़ आदत बदलती जा रही थी 
वो इंतजार वो लम्हा जाने कब आयेगा 
इस इंतजार में वो राते भी लम्बी हो जाती थी 
बस गुम सूम रहना  और तुम्हारे सपनो में खो जाना 
तुम भी अब कितने बदल गए हो ?
मैंने तो सपनो में ऐसा न देखा था 
इंतजार तो में अब भी करती हूं तुम्हारा 
पहले तुम से मिलने का और अब तुम्हारे घर आने का 
तुम पास तो आके देखो  में तो वही तुम्हारी खुशबू हूं
पहले में तुम्हारा अपने घर  में इंतजार करती  थी 
अब तुम्हारे घर में इंतजार करती हूं
में तो अब भी वही खुशबू हूं , तुम बस अपने प्यार से मुझे सींच के देखो 
एक बार मुझे छु  के देखो अब भी वही गहराई है मेरी इबादत में 
अब तो मैंने वो सब नाज नखरे छोड़ दिए हैं 
अब तुम्हारे नाज नखरे उठाने का मन करता है 
तुम मेरे पास आके तो देखो  अब भी वो ही  ऑंखें है 
जो तुम्हे कभी सकून देती थी 
तुम पास होकर भी नहीं हो 
तो ये ऑंखें मुझे  सिर्फ गमो का   पानी देती हैं 
कितनी बार समझती हूं   पर ये तुम्हे  ही प्यार करती है 
मुझे इंकार कर देती हैं
 दिनेश पारीक 




सोमवार, 10 सितंबर 2012

काफी वक़त गुजर गया है (2)

कभी कुछ जतन करता हूँ , कभी कुछ यतन करता हूँ |
फिर भी न जाने  क्यों  मैं उसी  मुहाने पर रहता हूँ  || ??
वक्त के पीछे तो मैं दोड़ नहीं सकता 
बस अपने पुराने ख्यालों मैं जीता हूँ 
वक्त  गुजरता जाता है नई बहु का राज आ जाता हैं 
हम अपने ही घर में बंद पड़े रहते हैं 
उनका स्वागत किया जाता है 
इस दुनिया को दोष दू , या इस ज़माने को दोष दू | 
इस पीढ़ी को दोष दू , या इस जवानी को दोष दू 
तुम सब को इस तरह बना दिया | जवान  तो हम भी  हुए  थे ,
कहूँ तो  ऐसे लगता है की जले पर नमक लगा दिया ||
फिर ना जाने  क्यों मैं तेरी लम्बी उम्र की दुआ करता हूँ ................
इस गोद मैं खेला करता था , अगुली पकड़ कर चला करता था 
 तुम को चलने  में तकलीफ हुई  तो घोडा भी बना करता था 
तुम मेरे होकर भी नए ज़माने के हो गए 
हम तो  अपने घर मैं ही   एक मेहमान  हो गए 
इस उम्र मैं  तेरे ज़माने के साथ चले की  कोशिश  करता हूँ 
फिर भी तुम दूर दिखाई देते हो 
मैं तो उसी मुहाने  पर रह जाता हूँ .............................
मैं तो जिंदगी को बोझ की तरह जी कर रवानगी ले  लूंगा
उस  वक्त   पास आ जाना मैं ख़ुशी ख़ुशी मर लुगा 
फिर ना जाने  क्यों मैं तेरी लम्बी उम्र की दुआ करता हूँ..

शनिवार, 8 सितंबर 2012

जिन को हमारी तलाश थी


आजकल वो  कहाँ   है ? जिन को हमारी तलाश थी
आजकल हम  कहाँ   है ?  उनको हमारी तलाश थी ||
 ख्यालों  मैं आजकल तो  ना चाँद  ना   जन्नत   जाते है |
बस सपनो मैं भी भटकते हैं श्मशान चले जाते हैं ||
उनकी दरिया दिली भी तो देखो
मेरे मरने के बाद उनके करीब रौशनी भी देखो
पूछा उस दिन लोगो ने इस  रास्ते पे केसे हो आप  ?
वो कहते चले गए
हम  भी सुनते चले गए
बोले हम तो आये ना थे कभी
पर उनके हाथ में तो मेरे श्मशान की मिटटी के साथ मेरा रकीब था
हमें तो विश्वास  बर्षों बाद हुआ
जब उन्हें  हमारी जगह एक  खुद्दार  की तलाश थी
वो बहुत दूर से लौट  रहे थे अँधेरे मैं
हर कोई पूछ रहा था   क्या है  हथेली  में  ?
कुछ बोलना चाहते थे पर
मेरे रकीब  ने कहा ये लोट रही है उनकी  राख   लेके श्मशान से खुशियों की तलाश में
आजकल वो कहा है ? जिन को हमारी तलाश थी
आजकल हम कहा है ?  उनको हमारी तलाश थी ||

दिनेश पारीक





मंगलवार, 4 सितंबर 2012

काफी वक़त गुजर गया है

काफी वक़त गुजर गया  है
यु ही खाट पे बैठे- बैठे 
अब आवाजे आती हैं रिश्तों की 
कभी रिसने की कभी  गांठ लगाने की 
अब आवाजें आती है 
कभी टूटने की  तो कभी जुड़ने की 
काफी वक़त गुजर चुका रिश्तो को  ढोते - ढोते 
अब तो खुद को ढूढता  हूँ रिश्तो में जीते - जीते 
वक्त नहीं ठहरता अहसास ठहर जाते है
यादो के भीतर से बस जख्म उभर आते है
कुछ खुशियों के पल दे जाते है 
कुछ ग़मों से दिल छिल जाते हैं 
रिश्तों से लिखा अब मिटने लगा है 
धुआं सा रह गया है जोश बुझने लगा है 
आज फिर वही आवाजें आने लगी गई 

रविवार, 2 सितंबर 2012

तुम न किसी की बेटी हो न किसी की बहिन


मैं
एक बहन
एक बेटी
एक औरत हूँ
तुम्हारी शब्दावली केवल उस औरत की बात करती है
जिसके हाथ साफ हैं
जिसका शरीर नर्म है
जिसकी त्वचा मुलायम है
और जिसके बाल खुशबूदार हैं
मेरी रग - रग में नफ़रत की आग भरी है
और तुम कितनी बेशर्मी से कहते हो
की मेरी 
भूख   एक भ्रम है
और मेरा नंगापन एक ख्वाब
एक औरत जिसके लिए तुम्हारी बेहूदा शब्दावली में एक शब्द भी ऐसा नहीं
जो उसके महत्त्व को बयान कर सके
एक औरत जिसके सीने में
गुस्से से फफकते नासूरों से भरा एक दिल छिपा है
जब भी   सानिया मिर्ज़ा , मेरी कोम जेसी औरत  मेडल जीतती है 
तो बहुत ख़ुशी होती है हमारा दिल बाग बाग हो जाता है 
पर जब शर्लिन चोपड़ा   बॉलीवुड मॉडल औऱ अभिनेत्री ऐसा कहती है की 
मैं पैसों के लिए सेक्स करती हूँ तो हमें क्या महसूस होता है हमारी अंतर आत्मा पर क्या गुजरती है ?
बहुत दर्द होता है जितनी ख़ुशी मेडल जितने की होती है उतना ही दर्द 
होता है जेसे शर्लिन चोपड़ा ने अपना मन शरीर नहीं बेचा  हिंदुस्तान की नारी का   शरीर बिका है 
हिंदुस्तान की नारी किसी के  अपना मन समान ट्विट किया हैं 
क्या हिंदुस्तान मैं पब्लिसिटी  इतनी घटिया स्तर  की   हो गई है ?
 एक नज़र शर्लिन चोपड़ा के बयानों पर 
जब सुबह ये न्यूज़ पढ़ी  तो अब तक समझ मैं नहीं अत की आज अख़बार देखा ही क्यूँ  अपने आप से गिलानी महसूस हो रही है 
पर मैं गिलानी क्यूँ करू  गिलानी तो उसे करनी चाहिए थी जिस ने असा बयान दिया हो वो तो इतने बेशर्म है  की बयानों पर बयान दिए जाये और लोग चुप चाप उनके tawitter Accounts  के followe र बने मजे लेते रहे  
३०/०८/२०१२ आज की हॉट मॉडल औऱ अभिनेत्री शर्लिन चोपड़ा फिर सुर्खियों में हैं। इस बार ‘न्यूड’ होकर नहीं, बल्कि अपनी बयान से उन्होंने सबको चौंका दिया है।

 २१.०८ /.२०१२ शर्लिन चोपड़ा प्लेबॉय मैग्जीन के कवर पेज पर छाने से पहले विवादों में आ चुकी हैं। इस सिलसिले में एक प्रेस कॉंफ्रेंस के दौरान शर्लिन चोपड़ा ने कई बोल्ड बयान दे दिए। साड़ी में बेहद हॉट नजर आ रही शर्लिन ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि उन्होंने पेटीकोट नहीं पहना है।
०२/०९/२०१२ याद नहीं, पैसे के लिए कितने लोगों के साथ किया सेक्स : शर्लिन चोपड़ा
शर्लिन के ट्विट किया, मुझे अपने वेबसाइट ऑन कॉनटेक्ट@शर्लिन चोपड़ा डॉट कॉम पर कई फोन नंबर मिले, जो मुझसे शारीरिक संबंध बनाने चाहते हैं।

शर्लिन ने लिखा, अतीत में बहुत सारे मौके पर मैंने मनी लेकर सेक्स किया। मुझे याद नहीं कि मैंने कितने लोगों से साथ सेक्स किया क्योंकि मेरे साथ हम बिस्तर होने वाले कोई एक पुरुष नहीं था जिस मेमोरी में रखा जाए। लेकिन जब से मैं जुलाई में लॉस एंजिल्स से लौटी हूं, मैंने अपनी सोच के स्तर को चेंज किया है। मैं अब समझती हूं कि मैं उस तरह से फैसले लेने के लिए आजाद नहीं हूं और दायित्व के अधीन हूं।

मिस चोपड़ा ने लिखा कि मुझ में इस तरह का आनंद उठाने का साहस है। मैंने तस्वीर में सेक्स का मजा लिया है। वीडियो में सेक्स का आनंद उठाया है। मैंने सेक्स का मजा लिया पर मैं अब इसके रिजल्ट से असहज महसूस कर रही हूं। मुझे दुख है कि आप निराश होंगे क्योंकि अब मैं पेड सेक्स के लिए उपलब्ध नहीं हूं। क्योंकि मैंने महसूस किया कि मुझे शारीरिक संबंध बनाने में ना तो आनंद आ रहा है और ना ही खुशी मिल रही है 
तबी तो लोग एक औरत  को सिर्फ हम बिस्तर  होने के अलावा कुछ नहीं समझ ते है  लोगो की सोच असी औरत  के बयानों का ही ओ नतीजा  है 
क्या एसे बयानों को  रोका जा सकता है 
श्याद   नहीं क्यूँ की ये तो अपने शरीर को अपनी पेरसोनल प्रोपर्टी समझती है  
तुम न किसी की बेटी हो न किसी की बहिन
दिनेश पारीक