रविवार, 19 दिसंबर 2010

मानसरोवर सूं उड़ हंसौ, मरुथळ मांही आयौ

मानसरोवर सूं उड़ हंसौ, मरुथळ मांही आयौ
धोरां री धरती नै पंछी, देख-देख चकरायौ

धूळ उड़ै अर लूंवा बाजै, आ धरती अणजाणी
वन-विरछां री बात न पूछौ, ना पिवण नै पाणी

दूर नीम री डाळी माथै, मोर निजर में आयौ,
हंसौ उड़कर गयौ मोर नै, मन रौ भेद बतायौ

अरे बावळा, अठै पड़्यौ क्यूं, बिरथा जलम गमावै
मानसरोवर चाल’र भाया, क्यूं ना सुख सरसावै

मोती-वरणौ निरमळ पाणी, अर विरछां री छाया
रोम-रोम नै तिरपत करसी, वनदेवी री माया

साची थारी बात सुरंगी, सुण सरसावै काया
जलम-भोम सगळा नै सुगणी, प्यारी लागै भाया

मरुधर रौ रस ना जाणै थूं, मानसरोवर वासी
ऊंडै पाणी रौ गुण न्यारौ, भोळा वचन-विलासी

दूजी डाळी बैठ्यौ विखधर, निजर हंस रै आयौ
सांप-सांप करतौ उड़ चाल्यौ, अंबर में घबरायौ

मोर उतावळ करी सांप पर, करड़ी चूंच चलाई
विखधर री सगळी काया नै, टुकड़ा कर गटकाई

अब हंस नै ठाह पड़ी आ, मोरां सूं मतवाळी
मानसरोवर सूं हद ऊंची, धरती धोरां वाळी

राजस्थान री, रहियां राजस्थान।

राजस्थान री, रहियां राजस्थान।
राजस्थानी रै बिना, थोथो मान 'गुमान'॥
आढो दुरसौ अखौ, ठाढ़ा कवि टणकेल।
भासा बिना न पांगरै, साहित वाळी बेल॥
पीथल बीकाणै पुर्णा, जाणै सकल जिहान।
पातल नै पत्री पठा, गहर करायौ ग्यान॥
सबद बाण पीथल लगै, मन महाराणा मोद।
अकबर दल आयो अड़ण, हलदी घाट सीसोद॥
धर बांकी बांका अनड़, वांका नर अर नार।
इण धरती रा ऊपना, प्रिथमी रा सिंणगार॥
धन धरती धन ध्रंगड़ो, धन धन धणी धिणाप।
धन मारु धर धींगड़ा, जपै जगत ज्यां जाप॥
रचदे मेहंदी राचणी, नायण रण मुख नाह।
जीतां जंग बधावस्यां, ढहियां तन संग दाह॥
नरपुर लग निभवै नहीं, आज काल री प्रीत।
सुरपुर तक पाळी सखी, प्रेम तणी प्रतीत॥
मायड़ भासा मान सूं, प्रांत तणी पहिचांण।
भासा में ईज मिलैह, आण काण ऒळखांण॥
मायड़ भासा जाण बिण, गूंगो ग्यान 'गुमान'।
तीजा गवरा होळीका, हुवै प्रांत पहिचांन॥
भाइ बीज राखी बंधण, गीत भात अर बान।
बनौ विन्याक कामण्या, विण भासा न बखान॥

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

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यादें "हिन्दी" कविता की दुनियाँ: मैं प्रिय पहचानी नहीं

यादें "हिन्दी" कविता की दुनियाँ: मैं प्रिय पहचानी नहीं: "पथ देख बिता दी रैन मैं प्रिय पहचानी नहीं ! तम ने धोया नभ-पंथ सुवासित हिमजल से; सूने आँगन में दीप जला दिये झिल-मिल से; आ प्रात बुझा गया कौन ..."

प्रेमी अपनी प्रेमिका का हाथ माँगने उसकी माँ के पास पहुँचा

प्रेमी अपनी प्रेमिका का हाथ
माँगने उसकी माँ के पास पहुँचा 
तब वह गुस्से में बोली
‘तुम्हारे पास क्या है 
गाड़ी, बंगला या बैंक बेलेंस 
प्रेमी फिल्मी स्टाइल में बोला
‘मेरे पास बस प्यार है’
प्रेमिका की माँ भड़क गयी गयी
और चिल्लाकर बोली 
‘उसका क्या मेरी बेटी अचार डालेगी 
यह कमाकर तुम्हें पालेगी 
यह हर महीने नया सूट खरीद कर लाती है 
तुम्हें जिस मोबाइल से करती है फोन
उसमे सिम बाप के पैसे से डलवाती है
तुम इसके खर्च उठा सकोगे
क्या है तुम्हारे पास 
प्रेमी बोला
‘मेरे पास बस प्यार है’

प्रेमिका अपनी माँ से नाराज होकर बोली 
‘मम्मी तुम मेरी इसके साथ 
शादी कराने पर राजी हो जाओ 
नहीं तो में अपनी जान दे दूँगी या
इसके साथ भाग जाऊंगी ‘
माँ खुश होकर बोली
‘बेटी इसमें पूछना क्या 
कल को भागती है
आज ही भाग जा 
बाकी मैं संभाल लूँगी’
वह अपने कमरे से 
अपना सामान उठाकर ले आई
और प्रेमी से बोली
‘चलो अब यहाँ से निकलते हैं
कहीं और बसते हैं’
‘ठीक है कुछ पैसे भी रख लेना
तुम्हारे प्यार में पिताजी के दिये 
सब पैसे तुम पर खर्च का दिया
अब जो बचा
मेरे पास बस प्यार है’

लोगों में सोच जगाने के लिये चला रहे सभी अभियान।

लोगों में सोच जगाने के लिये चला रहे सभी अभियान।
किताबों के गुलाम मिटाने निकले हैं गुलामी के निशान।।
नारी स्वतंत्रता का नारा लगाते हुए वह मुस्कराते हैं
गृहस्थी में पुरुष को बैल बनाने में ही देखते नारी की शान।।
पूरी जिंदगी दिखाया समाज को उन्होंने नया रास्ता
अपनी सोच से पैदल रहे,पराये ख्याल पर पाया सम्मान।।
मसीहा बनने की चाहत में ओढ़ लिया अपने आगे अंधेरा
अमन में इधर उधर ढूंढते हैं, जमाने में जंग के पैगाम।।
काट कर लोगों को कर दिया पहले अलग अलग
फिर मांगने निकले है लोगों से एकता का दान।।
कहैं दीपक बापू, बड़े बन गये कई छोटी सोच के कई लोग
चेहरे उनके पर्दे पर चमकते दिखते, पर डोलता लगता ईमान।।

विषयों के भूल जाना

विषयों के भूल जाना
उनके सोचने का तरीका है।
अपनी कहते रहते हैं
सुनने का नहीं उनको सलीका है।
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वादों का व्यापार
दिल बहलाने के लिये किया जाता है,
मतलब निकल जाये तो
फिर निभाने कौन आता है।
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बहसों को दौर चले
जाम टकराते हुए।
अपनी अपनी सभी ने कही
मुंह खुले पर कान बंद रहे,
इसलिये सब अनुसने रहे,
जब तक रहे महफिल में
लगता था जंग हो जायेगी,
पहले से तयशुदा बहस
परस्पर वार करायेगी,
पर बाहर निकले दोस्तों की तरह
बाहें एक दूसरे को पकड़ाते हुए।
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कोई खरीदता तो
वह भी सस्ते में बिक जाते,
नहीं खरीदा किसी ने कौड़ी में भी
इसलिये अब अपने को अनमोल रत्न बताते।